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सिया की मौत, वीर की बेरहमी

आयरा के लिए यह रात किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। वह कमरे के एक कोने में खड़ी थी, जबकि वीर बेफिक्री से अपने वॉक इन क्लोसेट की तरफ बढ़ा और अपनी शेरवानी उतारकर एक साइड में टांग दी।

कमरा सजा-संवरा था, लेकिन उसमें कोई गर्मजोशी नहीं थी। हर चीज़ ब्लैक और ग्रे थी, ठंडी, वीर की तरह।

आयरा ने धीरे से कहा, "मैं… मैं कहाँ सोऊँ?"

वीर ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया, "यह मेरा कमरा है, मेरा बेड… और अब तुम मेरी पत्नी हो। जहाँ चाहो, सो सकती हो।"

उसकी आवाज़ में हुक्म था, जैसे कोई एहसान कर रहा हो। आयरा ने होंठ भींच लिए और धीरे-धीरे कमरे के एक कोने में पड़ी सोफे की तरफ बढ़ी।

वीर ने एक नजर उसे देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह खिड़की के पास खड़ा हो गया, अपनी whiskey glass में drink डालते हुए बाहर अंधेरे को देखने लगा।

कमरे में गहरी खामोशी छा गई।

आयरा ने पहली बार वीर को करीब से देखा था। उसकी काली आँखों में एक अनजाना दर्द था, एक छुपी हुई बेचैनी। उसने पहली बार सोचा, क्या यह आदमी सच में इतना निर्दयी है, या इसके दिल में भी कोई जख्म छुपा है?

कुछ मिनटों बाद वीर ने गहरी आवाज़ में कहा, "तुम इस शादी से खुश नहीं हो, है ना?"

आयरा ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे। "क्या आप खुश हैं?" उसने सवाल के जवाब में सवाल किया।

वीर उसकी आँखों में कुछ पल देखता रहा, फिर बिना जवाब दिए अपना drink खत्म किया और बेड की तरफ बढ़ गया।

"खुशी और दर्द, आयरा… ये दोनों ही चीज़ें मेरी दुनिया में कोई मायने नहीं रखतीं," उसने बेड पर बैठते हुए कहा। "यहाँ सिर्फ ताकत चलती है।"

आयरा को वीर के शब्दों में दर्द सुनाई दिया। लेकिन यह कैसा दर्द था? आयरा को नींद नहीं आ रही थी। वीर की बातों ने उसे बेचैन कर दिया था। "खुशी और दर्द हमारी दुनिया में कोई मायने नहीं रखते..." ये शब्द उसके दिमाग में गूंज रहे थे।

उसने वीर की तरफ देखा, जो अब तक अपनी तरफ करवट लिए सो चुका था, या शायद सोने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसकी मुट्ठियाँ अब भी कसी हुई थीं, जैसे किसी गहरे जख्म को दबाने की कोशिश कर रहा हो।

वहीं वीर आँखें बंद किए किसी और दुनिया में ही खोया हुआ था।

10 साल पहले, राठौड़ मेंशन

राठौड़ मेंशन की वही भव्यता, वही ताकत से भरा माहौल… लेकिन तब वीर सिंह राठौड़ माफिया डॉन नहीं था। वह सिर्फ 20 साल का एक नौजवान था, जो तेज़, समझदार और जिम्मेदार था, लेकिन बेरहम नहीं।

उसकी दुनिया का सबसे खूबसूरत हिस्सा थी "सिया", उसकी बचपन की दोस्त, उसकी पहली और आखिरी मोहब्बत।

सिया… जो चंचल थी, मासूम थी, लेकिन वीर के लिए उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी।

वीर के लिए सिया सिर्फ एक नाम नहीं थी, वह उसकी दुनिया थी। वह हर बार वीर को हँसाती, जब वह किसी माफिया डील में उलझा होता। वह कहती थी, "वीर, तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो… यह दुनिया तुम्हें बेरहम बनाने के लिए नहीं बनी है। प्लीज इस दुनिया से दूर हो जाओ।"

लेकिन वीर जानता था कि उसकी दुनिया में प्यार की कोई जगह नहीं थी। माफिया की दुनिया में प्यार सिर्फ कमजोरी बनता है, और कमजोरी की कीमत खून से चुकानी पड़ती है।

फिर भी, एक रात वीर ने फैसला किया कि वह सिया को अपने दिल की हर बात बताएगा।

लेकिन वह रात उसकी जिंदगी की सबसे काली रात बन गई।

आज वीर का बर्थडे था और उसकी फैमिली ने राठौड़ मेंशन में एक बहुत बड़ी पार्टी रखी थी।लेकिन वीर के लिए उस रात सिर्फ एक ही अहमियत थी, सिया को अपनी मोहब्बत का इकरार करना।

वह उसे ढूँढता हुआ बाहर आया, लेकिन सिया कहीं नहीं थी।

"सिया मैमसाहब को कोई उठा ले गया, साहब!"—गार्ड की घबराई हुई आवाज़ आई।

वीर का दिल एक पल के लिए थम गया।

"शेखावत गैंग।" वो धीरे से बोला और उसके हाथ की मुट्ठियाँ कस गई।

वह वही लोग थे जो राठौड़ परिवार से बरसों से दुश्मनी रखते थे। लेकिन उन्होंने वार वीर की सबसे कमजोर जगह पर किया था।

वीर के अंदर कुछ टूटने लगा। उसने बिना एक पल गँवाए अपनी टीम को इकट्ठा किया और सिया की तलाश में निकल पड़ा। उसे शेखावत गैंग के अड्डों के बारे में अच्छे से पता था।

करीब एक घंटे बाद वीर ने उस पुरानी फैक्ट्री में कदम रखा, जहाँ सिया को बंधक बनाया गया था।

उसके सामने खड़े थे रणधीर शेखावत और उसके लोग।

वीर की बंदूक सीधी रणधीर के सिर पर थी। लेकिन फिर उसकी नजर जमीन पर पड़ी सिया पर गई, जो खून से लथपथ थी।

सिया ने वीर की तरफ देखा… उसकी हेज़ल ब्राउन आँखों में दर्द था, प्यार था, लेकिन कोई शिकायत नहीं थी।

"तुम कमजोर नहीं हो, वीर," सिया ने आखिरी बार मुस्कुराते हुए कहा। "लेकिन मैं तुम्हारी कमजोरी बन गई… अब नहीं रहूँगी।"

और अगले ही पल… उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं। वीर ने सिया को कसकर अपनी बाहों में भर लिया। और उसकी एक जोरदार चीख सुनाई पड़ी " Siyaaaa! "

उस आवाज में इतना दर्द था कि वहाँ खड़े हर शख्स का दिल दहला गया। उस दिन वीर के अंदर कुछ मर गया।

उस रात पहली बार वीर सिंह राठौड़ ने खून बहाया था। और तब से… वह कभी नहीं रुका। आज का वीर, जो प्यार से नफरत करता है।

वीर ने खुद से एक वादा किया, अब वह कभी किसी से प्यार नहीं करेगा। उसके लिए इमोशन्स, फीलिंग्स, और प्यार सिर्फ कमजोर लोगों की चीजें थीं।

अब वह सिर्फ एक शख्स था, बेरहम, निर्दयी, और खतरनाक। और आज… आयरा उसकी दुल्हन थी, लेकिन क्यों की उसने आयरा से शादी?

वीर का अतीत भले ही अंधेरे से भरा था, लेकिन उसकी मौजूदा जिंदगी भी कम खतरनाक नहीं थी।

आज, वह माफिया डॉन था—एक ऐसा नाम जिससे दुश्मन कांपते थे। लेकिन अब, उसके जीवन में एक नया मोड़ आया था—आयरा मेहता।

एक लड़की जो मासूम थी, लेकिन मजबूर थी। जिसे उसने अपनी दुनिया में घसीट तो लिया था, लेकिन उसके लिए कोई जगह नहीं बनाई थी।

वीर उठकर बैठ गया और उसकी नजर खुद ब खुद ही आयरा के ऊपर चली गई जो सोफे पर सिमट कर सुकून से सो रही थी। वीर अपनी जगह से खड़ा हुआ और उसने ब्लैंकेट लिया और ले जाकर आयरा को ब्लैंकेट से कवर कर दिया।

लेकिन वीर की नजर आयरा के मासूम चेहरे पर ठहर गई। " क्या मैंने सही किया एक मासूम लड़की के साथ। इसके बाप से बदला लेने के लिए इस मासूम को मैंने अपनी दुनिया में घसीट लिया जबकि इसकी तो कोई गलती भी नहीं थी। " वीर के मन में सवाल उठ रहे थे।

अगली सुबह

आयरा की आँखें खुलीं तो सूरज की हल्की किरणें कमरे में आ रही थीं। वह कुछ सेकंड के लिए भूल गई कि वह कहाँ थी। लेकिन जैसे ही उसने चारों तरफ देखा, काले और ग्रे रंग की थीम, ठंडा माहौल, और वीर का साया… सब कुछ याद आ गया।

वह अभी भी सोफे पर ही थी। रातभर उसने एक करवट भी नहीं बदली थी, मानो इस जगह से कोई अपनापन ही न हो।

तभी वॉशरूम का गेट खुला।

वीर ब्लैक शर्ट और ब्लैक ट्राउजर पहने बाहर आया। उसके गीले बाल उसकी माथे पर झूल रहे थे। वह घड़ी पहनते हुए उसकी तरफ देख रहा था।

"जाग गईं?" वीर की आवाज़ ठंडी थी।

आयरा ने बिना कुछ कहे अपनी साड़ी सही की और उठने लगी, लेकिन उसके पैर लड़खड़ा गए।

"संभलकर," वीर ने हल्की आवाज़ में कहा, लेकिन उसकी आँखों में कोई नर्मी नहीं थी।

आयरा ने उसकी तरफ देखा और गहरी सांस ली। फिर, पहली बार उसने हिम्मत जुटाई और कहा, "क्या मैं यहां हमेशा के लिए कैद हूँ?"

वीर ने अपनी घड़ी बांधते हुए जवाब दिया, "तुम मेरी पत्नी हो। जहां तक मुझे याद है, शादी को कैद नहीं कहते।"

आयरा का गुस्सा उबल पड़ा। "शादी जबरदस्ती की जाए, तो उसे कैद ही कहते हैं! मिस्टर राठौड़। "

वीर ने पहली बार उसकी आँखों में देखा। उसके लहजे में आक्रोश था, डर नहीं।

वह आगे बढ़ा और उसके बेहद करीब आकर खड़ा हो गया। "अगर यह कैद है, तो इसके नियम भी मेरे होंगे। याद रखना, जान… मैं तुम्हें तोड़ सकता हूँ, लेकिन खुद नहीं टूटूंगा।"

आयरा ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। उसकी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन वह झुकी नहीं।

"आपको जो करना है कीजिए, लेकिन मैं कभी भी इस रिश्ते को नहीं अपनाऊँगी," उसने काँपते हुए कहा।

वीर ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसमें कोई खुशी नहीं थी। "देखते हैं, आयरा… वक़्त तुम्हें क्या सिखाता है। एक दिन तुम खुद कहोगी कि तुम मेरे बिना नहीं रह सकती।"

तभी उनके रूम का गेट नॉक हुआ।

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