
शहनाइयों की गूँज और मंडप में जलते हुए अग्निकुंड की लौ के सामने वीर सिंह राठौड़ खड़ा था। एक ऐसा आदमी जिसे ताकत और सत्ता की आदत थी। उसकी काली आँखों में एक अजीब सी चमक थी, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसने अपने सामने खड़ी उस लड़की को देखा, जो अब उसकी दुल्हन बनने जा रही थी।
"मैंने तुमसे कहा था ना, आयरा? तुम पर सिर्फ मेरा हक है... और देखो, अब तुम मेरी होने जा रही हो।"
वीर की गहरी, रौबदार आवाज़ आयरा के कानों में गूँजी। उसका दिल जैसे एक पल के लिए थम गया। वह चाहकर भी इस बंधन से भाग नहीं सकती थी।
लाल जोड़े में सजी आयरा मेहता का मासूम चेहरा वीर के कठोर हावभाव के सामने और भी नाज़ुक लग रहा था। उसकी हेज़ल ब्राउन आँखों में आँसू थे, जो उसके भीतर उमड़ रहे तूफान का सबूत थे। उसकी दुनिया आज एक पल में बदल गई थी।
उसने अपनी माँ की ओर देखा, जो बेबस खड़ी थीं। उनके चेहरे पर लाचारी साफ झलक रही थी। पिता ने उससे सिर्फ एक ही बात कही थी, "हमारे पास और कोई रास्ता नहीं था, बेटा..."
आयरा का दिल छलनी हो गया था। क्या वाकई उसकी जिंदगी की डोर अब इस शख्स के हाथों में थी? यह वही वीर सिंह राठौड़ था, जिससे शहर के सबसे खतरनाक लोग भी खौफ खाते थे। आज एक नाजुक से कली इसकी जिंदगी बनने जा रही थी।
पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे। वीर ने अपनी मजबूत हथेलियों से आयरा की कोमल कलाई पकड़ी और उसे वेदी के पास खींच लिया। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि आयरा का कलेजा काँप उठा।
"सात फेरे लो, आयरा। मेरी दुल्हन बनो। अब कोई बहाना नहीं चलेगा," वीर के शब्दों में हुक्म था, प्यार नहीं।
आयरा की आँखों से आँसू ढलक गए। यह शादी उसकी मर्ज़ी से नहीं थी, लेकिन वह मजबूर थी। उसने कांपते हाथों से पल्लू सही किया और पहला कदम बढ़ाया।
वीर ने उसके चेहरे को देखा, उसकी हर घबराहट, हर डर को महसूस किया। लेकिन उसके चेहरे पर कोई अफ़सोस नहीं था। उसके लिए यह सिर्फ एक जीत थी—आयरा अब उसकी थी।
जैसे ही सातवां फेरा पूरा हुआ, वीर ने आयरा की माँग में सिंदूर भर दिया। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। आयरा ने आँखें बंद कर लीं।
अब वह पूरी तरह वीर सिंह राठौड़ की हो चुकी थी…
विदाई की समय
आयरा की आँखों से आँसू लगातार गिर रहे थे। उसकी दुनिया जिसे वह प्यार और अपनापन समझती थी, वह पीछे छूट चुकी थी। अब वह उस दुनिया में कदम रखने जा रही थी जहाँ न प्यार था, न अपनापन, सिर्फ एक आदमी का हुक्म था, जिसकी मर्ज़ी से ही सब चलता था।
वीर सिंह राठौड़।
थोड़ी ही देर में उनके सामने एक ब्लैक लक्जरी गाड़ी आकर खड़ी हुई । वीर ने आयरा को गाड़ी में बिठाया। उसके बाद खुद भी गाड़ी में बैठ गया।
आयरा ने पीछे मुड़कर नम आँखों से अपने माता-पिता को आखिरी बार देखा। उनकी आँखों में बेबसी थी, मगर उन्होंने कुछ नहीं कहा। गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ी, और उनके चेहरे ओझल हो गए।
आयरा ने वीर की तरफ देखा, जो उसके ठीक बगल में बैठा था। उसकी काली आँखें अब भी ठंडी और कठोर थीं, जैसे उसे इस शादी से कोई फर्क ही न पड़ा हो।
"अब रोने का कोई फायदा नहीं, आयरा," वीर ने बिना उसकी तरफ देखे कहा। "तुम अब जहाँ जा रही हो, वहाँ आँसुओं की कोई जगह नहीं है।"
आयरा ने होंठ भींच लिए, आँसू पोंछ डाले। वह जानती थी कि अब उसे खुद को मजबूत बनाना होगा।
राठौड़ मेंशन
करीब एक घंटे बाद गाड़ी एक विशाल हवेली के गेट पर रुकी। "राठौड़ मेंशन", जहाँ सत्ता, खौफ और ताकत का बसेरा था।
गेट खुला और गाड़ी गेट से अंदर चली गई। मेंशन किसी महल से कम नहीं थी, लेकिन इसकी भव्यता में अजीब सा सन्नाटा था। नौकर-चाकर कतार में खड़े थे, लेकिन किसी के चेहरे पर खुशी नहीं थी। यहाँ की दीवारें भी वीर के स्वभाव की तरह ठंडी और कठोर लग रही थीं।
जैसे ही वीर और आयरा गाड़ी से उतरे, अंदर से एक बुजुर्ग औरत आईं, राठौड़ हवेली की दादीसा। बाकी कोई भी वहाँ मौजूद नहीं था आयरा को लगा कि यहाँ ज्यादा कोई नहीं रहता होगा।
"अंदर आने दो बहू को," उन्होंने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में स्नेह कम और परंपरा का दबाव ज्यादा था।
दरवाजे पर एक थाल में रखा हुआ चावल और दीया रखा गया था। आयरा को गृह प्रवेश करना था, लेकिन उसके पाँव आगे नहीं बढ़ रहे थे। यह कोई गृह प्रवेश नहीं था, यह उसके लिए किसी अंजान कैदखाने में दाखिल होने जैसा था।
वीर ने उसकी तरफ देखा और धीरे से फुसफुसाया, "ज़्यादा वक्त मत लगाओ, आयरा। यहाँ हर चीज़ मेरी मर्ज़ी से चलती है।"
उसकी आवाज़ में वही ठंडापन था, वही अधिकार… जो आयरा को और भी डरा रहा था।
कांपते हाथों से उसने थाल में रखे चावल को पैर से गिराया और अंदर कदम रखा। उसकी आँखें चारों ओर घूमीं, भव्य झूमर, महंगे फर्नीचर, लंबी-लंबी दीवारें… लेकिन इन सबके बीच वह खुद को एक कैदी की तरह महसूस कर रही थी।
वीर आगे बढ़ चुका था, और दादीसा ने सर्वेंट को आदेश दिया, "बहू को वीर के कमरे में ले जाओ।"
आयरा का दिल तेजी से धड़क रहा था। अब वह पूरी तरह सर राठौड़ मेंशन का हिस्सा बन चुकी थी…
सर्वेंट आयरा को धीरे-धीरे सीढ़ियों की तरफ ले जा रही थी। आयरा धीरे धीरे उस सर्वेंट के पीछे पीछे चल रही थी। हर कदम के साथ उसके दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी। वह जानती थी कि अब उसके लिए कोई रास्ता नहीं बचा था।
सीढ़ियों के आखिरी छोर पर एक बड़ा सा दरवाजा था, जिसके आगे दो सिक्योरिटी गार्ड खड़े थे। जैसे ही सर्वेंट ने दरवाजा खोला, आयरा की आँखों के सामने एक बड़ा सा रूम आया, काले और ग्रे रंग की थीम में सजा हुआ, ठंडा और खामोश। यह रूम मेंशन का सबसे बड़ा रूम था।
" अब आप यहाँ से खुद ही अंदर चली जाइये, छोटी मालकिन। " सर्वेंट बाहर से ही वापिस चली गई। क्योंकि वीर के रूम में उसके पर्सनल गार्ड के सिवा किसी को भी आने की इजाजत नहीं थी।
आयरा धीमे कदमों से आगे बढ़ रही थी अचानक ही ध्यान ना होने की वजह से उसका पैर किसी चीज से टकरा गया और वो गिरने वाली ही थी कि किसी की मजबूत बाहों ने उसे थाम लिया।
आयरा ने आँखें कसकर भींच ली थीं। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। गिरने से ठीक पहले किसी ने उसे अपनी मजबूत बाहों में थाम लिया था। उस पकड़ में इतनी ताकत थी कि उसे महसूस होते ही झुर्रियाँ सी दौड़ गईं।
धीरे-धीरे उसने अपनी आँखें खोलीं और सामने उसी इंसान को पाया, जिससे वह दूर जाना चाहती थी, वीर सिंह राठौड़।
उसकी काली आँखें गहरी और धधकती हुई लग रही थीं, जैसे उसके भीतर कोई तूफान छुपा हो। उसने आयरा को कुछ सेकंड तक यूँ ही पकड़े रखा, मानो उसकी हिम्मत को परख रहा हो।
"इतनी जल्दी गिरने लगीं, जान?" वीर की आवाज़ ठंडी लेकिन तीखी थी। "अभी तो यह सफर शुरू हुआ है।"
आयरा को एहसास हुआ कि वह अब भी उसकी बाहों में थी। उसने झटके से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वीर ने उसे और करीब खींच लिया।
"छोड़िए मुझे!" आयरा ने धीमी लेकिन मजबूती से कहा।
वीर की पकड़ आयरा की कमर पर और ज्यादा कस गई। वह एक पल को मुस्कुराया, लेकिन उस मुस्कुराहट में कोई नर्मी नहीं थी।
"तुम्हें छोड़ने के लिए तो मैंने तुम्हें अपनी दुल्हन नहीं बनाया, जान।" वीर की आवाज़ में हुक्म था।
आयरा ने काँपते हुए अपने हाथ उसकी पकड़ से छुड़ाए और पीछे हटी। उसकी आँखें वीर से टकराईं, लेकिन उसने तुरंत नजरें झुका लीं।
वीर एक पल तक उसे देखता रहा, फिर अपने कोट की बटन खोलते हुए कमरे के अंदर चला गया। उसने घड़ी की तरफ देखा और सख्त लहजे में कहा, " चिंता मत करो फिल्हाल मैं तुम्हारे साथ कुछ भी करने के मुड में नहीं हूँ, इसलिए सो जाओ। बहुत रात हो चुकी है। "
आयरा की आँखों में आँसू भर आए, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह शादी उसके लिए कैसी परीक्षा बनने वाली थी।
कमरे की ठंडी दीवारों के बीच वह खुद को पहले से भी ज्यादा अकेला महसूस कर रही थी।
क्या वीर सच में एक पत्थर दिल इंसान था? या उसके सख्त चेहरे के पीछे कोई और भी राज छुपा था?
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